सामने जिंदगी खड़ी थी

 लम्हा लम्हा जोड़कर बनी इक कड़ी थी,
 खुद की लिखी इबारत पर धूल सी पड़ी थी ।
 मुस्कुराने को मिली थीं सारी उम्र मगर,
 हंसी आ न सकी सामने जिंदगी खड़ी थी ।

 विजय कुमार सिंह

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